पर्यावरण प्रदूषण में सबसे ख़तरनाक है वायु-प्रदूषण
बिना भोजन के हम 22 दिन तक जिन्दा रह सकते, बगैर पानी के हम 22 घण्टे जिन्दा रह लेंगे, लेकिन बिना सांस के हम 22 मिनट भी जिन्दा नहीं बच सकते हैं। यही कारण है कि वायु को प्राणवायु की संज्ञा दी गई है। हमारे देश में गरीब मजदूरों की ऐसी स्थिति है कि वे रोग-ग्रस्त होकर भी काम करते रहते हैं ताकि उनकी नौकरी पक्की हो जाए। कोल फील्ड क्षेत्र में निमोक्नोसिस बीमारी की जगह टी.बी. का इलाज इन मजदूरों को मिलता है ताकि मजदूरों को कोल-फील्ड मालिकों से क्षतिपूर्ति न मिल पाए। प्रिंटिंग प्रैस में प्रयुक्त रसायन में कारसिनोजेनिक तत्त्व पाए गए हैं जो यकृत, फेफड़ों, किडनी, गाल-ब्लैडर में कैंसर को जन्म देते हैं। फार्मल्डीहाइड तथा एक्रोलीन फेफड़ों का दमा तथा खांसी रोग के अतिरिक्त अन्य सांस की संक्रामक बीमारियों को जन्म देता है। सर्वे रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि पी.एम.-10 की 10 प्रतिशत सांद्रता में वृध्दि, 16 प्रतिशत सांस की बीमारी में वृध्दि का कारण बना। पी.एम.-2.5 की 10 प्रतिशत वृध्दि से ऐसी वृध्दि 12 प्रतिशत तथा सल्फेट सान्द्रता 10 प्रतिशत की वृध्दि से 6 प्रतिशत सांस के रोगियों में वृध्दि आंकी गयी है। हमारे घ्राण में प्रवाहित धूल एवं वायु-प्रदूषण के मॉनीटरिंग के लिए सी.एस.आई.ओ. चण्डीगढ़ ने ऐसे कई उपकरण बनाए हैं जिनमें से मुख्य रूप से पर्सनल डस्ट मानीटर तथा नेफोलोमीटर हैं।
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