समर्पित वनरक्षक दल रोक सकता है जंगलों की आग

देश में विगत दो वर्षों के बीच जंगलों में लगने वाली विनाशकारी आग की घटनाओं में 125 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है जिस से देश का बहुमूल्य ग्रीन-कवर तबाह हो रहा है। 2015 में भारत में जंगल की आग के 15,937 हादसे हुए थे जो 2017 में बढ़ कर 35,888 हो गए और इस वर्ष अब तक देश में जंगल की आग के 41,000 मामले सामने आ चुके हैं। भारत के वन सर्वेक्षण के अनुसार, जंगल की आग से होने वाली क्षति के कारण भारत को प्रत्येक वर्ष कम से कम 550 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है, जबकि पर्यावर्णीय नुकसान का तो आकलन ही नहीं किया जा सकता है।
आग प्राचीन काल से भारत के वनीय परिदृश्य का हिस्सा रही है। परन्तु, अब तो, हर वर्ष देश के लगभग प्रत्येक राज्य में जंगल की आग अपना प्रचण्ड रूप दिखाती आ रही है। आज, जंगलों के आसपास बढ़ती आबादी के कारण आग के ये खतरे और भी बढ़ गए हैं जिससे लोगों का जीवन और वन-संपदा दांव पर हैं। सन 2014 में देश के 57,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले जंगल आग की वजह से नष्ट हो गए। आग की भेंट चढ़ा देश के वनों का यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश से भी बड़ा और भारत के कुल वन-क्षेत्र का लगभग 7 प्रतिशत तक था। 2014 में आग में जलने वाला सबसे ज्यादा वन-क्षेत्र दक्षिणी राज्यों – ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, तेलंगाना, झारखंड और कर्नाटक का था, जबकि उस वर्ष हिमालयाई क्षेत्र में कोई आग नहीं देखी गई थी। परन्तु, विगत दो वर्षों में इस क्षेत्र में भी अनेक स्थानों पर आग की घटनाओं में बहुत वृद्धि हुई है। इस वर्ष गर्मी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही उत्तराखंड के जंगल धधकने लगे। यहां गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में आग लगने से 2,000 हेक्टेयर में मौजूद बहुमूल्य वन-संपदा खाक हो गई। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में अब तक कोई 6,000 हेक्टेयर वन-क्षेत्र आग की चपेट में आ चुका है। सबसे ज्यादा नुकसान उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर जैसे राज्य झेल रहे हैं, जहां ढलान वाले पहाड़ी जंगलों में बहुत तेजी के साथ आग फैलती है।

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