विश्व के मीठे पानी के महत्त्वपूर्ण जलस्रोत हैं ग्लेशियर
हमारी पृथ्वी के अनेक रहस्यों में से ग्लेशियर भी एक ऐसा रहस्य है जिसके विषय में भू-वैज्ञानिक विगत कई सदियों से जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं। यद्यपि अब हिमनदों अर्थात् ग्लेशियरों के बारे में बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया गया है, फिर भी ऐसे बहुत से रहस्य अब भी बरकरार हैं जिनके विषय में भू-वैज्ञानिक लगातार जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं। पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे अंटार्कटिका, ग्रीनलैण्ड और कनाड़ा के आर्कटिक में दुनिया की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत पर ग्लेशियरों का कब्जा है। वस्तुत: ग्लेशियरों को अन्तिम हिमयुग के अवशेष के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है जब भूमि का 32 प्रतिशत हिस्सा बर्फ से ही कवर था। विगत 7,50,000 वर्षों में 8 हिमयुग आ चुके हैं। ‘ग्लेशियर’ शब्द फ्रेंच भाषा से आया है। जानकारों का यह भी कहना है कि लैटिन भाषा के एक अश्लील शब्द ‘ग्लेशिया’ से यह शब्द लिया गया है। परन्तु अंतत: लैटिन शब्द ‘ग्लेशिस’ जिसका अर्थ बर्फ होता है, से ग्लेशियर का नाम लिया जाना सिध्द हुआ है। ग्लेशियर ग्लोबल क्रायोस्फीयर के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। ग्लेशियरों के निर्माण, विकास और इसके प्रवाह की प्रक्रिया को ‘हिमाच्छादन’ और ग्लेशियरों के अध्ययन करने को ‘ग्लेशियोलॉजी’ कहा जाता है। विश्व के अधिकांश ग्लेशियर अर्थात् हिमनद अंटार्कटिका महाद्वीप एवं ग्रीनलैण्ड में हैं। अफ्रीका सहित प्रत्येक महाद्वीप के पर्वतों पर भी हिमनद पाए जाते हैं।
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