कहाँ खो गई बरगद पीपल की छाँव?
हरियाली का पर्याय रहा सम्पूर्ण उत्तर भारत कभी अपनी जीवंत संस्कृति के लिए विश्व-विख्यात रहा है। बरगद, पीपल, आम, अमरुद, जामुन, नीम, शहतूत जैसे असंख्य पेड़ों की जन्मस्थली यहां की धरती सदैव वृन्दावन के कुंजों से प्रतिस्पध्र्दा
 

प्रदूषण के कारण ख़तरे में है जीवन धरती पर
हमारी पृथ्वी के पर्यावरण में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण न केवल समूची मानव जाति का जीवन दांव पर लगा है बल्कि इससे धरती पर रहने वाले अन्य जीव-जन्तु विशेषकर वनों में रहने वाले वन्य-प्राणियों तथा नदियों
पर्यावरण प्रदूषण में सबसे ख़तरनाक है वायु-प्रदूषण
बिना भोजन के हम 22 दिन तक जिन्दा रह सकते, बगैर पानी के हम 22 घण्टे जिन्दा रह लेंगे, लेकिन बिना सांस के हम 22 मिनट भी जिन्दा नहीं बच सकते हैं। यही कारण है कि वायु को प्राणवायु की संज्ञा दी गई है। हमारे
 
जलवायु और जीवन को प्रभावित करते हैं महासागर
समुद्र एवं महासागर एक शानदार एवं उत्कृष्ट सुन्दरता और मानवीय जीविका के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। बहुत से लोगों की आजीविका समुद्रों पर निर्भर है लेकिन इनसे उठने वाले शक्तिशाली तूफान और सुनामी भयंकर तबाही

WELCOME TO HAMARA BHUMANDAL

We are a part of ‘Jan-Shakti’, a non-profit, non-government organization which is engaged in different kinds of awareness programs for the ecology and environment, road-safety and traffic management, rural development & agro-marketing, education and consumer awareness. This NGO adopts all kind of genres for these awareness programs such as it hosts and arranges seminars, workshops and street plays; makes documentary & short films and publishes several magazines.

This NGO publishes 6 magazines namely- ‘Hamara Bhumandal’ (a journal on environment & ecology), ‘Watchful Consumers’ (a journal on consumer awareness), ‘Road-Sense Today’ (a journal on road-safety and traffic management), ‘Police Focus’ (a journal on Police Forces of India), ‘Sashart’ (a journal on rural development), and ‘Swantantra Vishwa Bharat’ (a journal on Education and political awakening).

समर्पित वनरक्षक दल रोक सकता है जंगलों की आग

देश में विगत दो वर्षों के बीच जंगलों में लगने वाली विनाशकारी आग की घटनाओं में 125 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है जिस से देश का बहुमूल्य ग्रीन-कवर तबाह हो रहा है। 2015 में भारत में जंगल की आग के 15,937 हादसे हुए थे जो 2017 में बढ़ कर 35,888 हो गए और इस वर्ष अब तक देश में जंगल की आग के 41,000 मामले सामने आ चुके हैं। भारत के वन सर्वेक्षण के अनुसार, जंगल की आग से होने वाली क्षति के कारण भारत को प्रत्येक वर्ष कम से कम 550 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है, जबकि पर्यावर्णीय नुकसान का तो आकलन ही नहीं किया जा सकता है।
आग प्राचीन काल से भारत के वनीय परिदृश्य का हिस्सा रही है। परन्तु, अब तो, हर वर्ष देश के लगभग प्रत्येक राज्य में जंगल की आग अपना प्रचण्ड रूप दिखाती आ रही है। आज, जंगलों के आसपास बढ़ती आबादी के कारण आग के ये खतरे और भी बढ़ गए हैं जिससे लोगों का जीवन और वन-संपदा दांव पर हैं। सन 2014 में देश के 57,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले जंगल आग की वजह से नष्ट हो गए। आग की भेंट चढ़ा देश के वनों का यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश से भी बड़ा और भारत के कुल वन-क्षेत्र का लगभग 7 प्रतिशत तक था। 2014 में आग में जलने वाला सबसे ज्यादा वन-क्षेत्र दक्षिणी राज्यों – ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, तेलंगाना, झारखंड और कर्नाटक का था, जबकि उस वर्ष हिमालयाई क्षेत्र में कोई आग नहीं देखी गई थी। परन्तु, विगत दो वर्षों में इस क्षेत्र में भी अनेक स्थानों पर आग की घटनाओं में बहुत वृद्धि हुई है। इस वर्ष गर्मी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही उत्तराखंड के जंगल धधकने लगे। यहां गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में आग लगने से 2,000 हेक्टेयर में मौजूद बहुमूल्य वन-संपदा खाक हो गई। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में अब तक कोई 6,000 हेक्टेयर वन-क्षेत्र आग की चपेट में आ चुका है। सबसे ज्यादा नुकसान उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर जैसे राज्य झेल रहे हैं, जहां ढलान वाले पहाड़ी जंगलों में बहुत तेजी के साथ आग फैलती है।

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